Environmentalist Arushi Nishank Spurs Thousands Of Women To Pick Up Sui Dhaga To Make Khadi Masks – Sets Sights On OTT Projects With Bollywood Bigwigs
August 22, 2020गांधी जी की आत्म निर्भरता से प्रेरित होकर हजारों महिलाएं कोविड-19 के मुकाबले के लिए ‘सुई-धागा’ से तैयार कर रही है सूती खादी मास्क : आरुषि निशंक
21 अगस्त 2020, कोलकाता. गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित होकर उत्तराखंड में आत्मनिर्भर, सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरणविद् और शास्त्रीय कथक नृत्यांगना आरुषि निशंक ने पुन: प्रयोज्य होनेवाले खादी और सूती मास्क बनाने के लिए उत्तराखंड में हजारों ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के इरादे से ‘सुई-धागा’ देकर प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षण के बाद इन महिलाओं द्वारा निर्मित सूती मास्क सेना के जवानों, पुलिस, ग्रामीण श्रमिकों और बॉर्डर इलाकों में ड्यूटी करनेवाले कोविड योद्धाओं को मुफ्त में वितरण किया गया है। अब तक एक लाख से ज्यादा सूती मास्क दिल्ली, मुंबई और उत्तराखंड के शहरों और कस्बों में मुफ्त में वितरण किया जा चुका है।
सुश्री आरुषि निशंक ने कहा: खादी गांधीजी की आत्मनिर्भरता का प्रतीक है और पर्यावरण के अनुकूल है और प्रधानमंत्री के आत्मनिभर भारत पहल की भावना के अनुरूप है। हज़ारों ग्रामीण महिलाओं ने कुशलतापूर्वक प्रशिक्षण पाकर खादी से निर्मित सूती मास्क तैयार कर रही है। कोलकाता की सुप्रसिद्ध सामाजिक संस्था प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा ‘एक मुलाकात’ नामक वेबिनार का आयोजन किया गया। इसमें महिलाओं को लेकर काम करनेवाली संस्था ‘एहसास’ के प्रमुख निलिशा अग्रवाल के साथ ‘एक मुलाकात’ कार्यक्रम के दौरान विचार विमर्श में आरुषि निशंक ने अन्य कई विषयों पर प्रकाश डाला, जो वर्षों से प्रमुख व्यक्तित्व और उपलब्धि हासिल करने वालों के साथ एक मुलकात कार्यक्रम मुक्त विचार-विमर्श के लिए एक लोकप्रिय मंच बन गया है।
सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ता संदीप भूतोरिया (ट्रस्टी, प्रभा खेतान फाउंडेशन) का कहना है कि: एक युवा महत्वाकांछी के लिए अपने जीवन के अनुभवों और सपनों को दूसरों के साथ साझा करने के लिए यह काफी अच्छा मंच है। अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करने वाली आरुषि निशंक हजारों गरीब महिलाओं और अन्य लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं। वर्तमान में आरुषि, गंगा और इसकी जैव विविधता के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए स्पर्श गंगा अभियान के माध्यम से हजारों लोगों के साथ जुड़ी है।
देहरादून में हिमालय आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल की चेयरपर्सन आरुषि ने अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण शिखर सम्मेलन (आइईएस) की अध्यक्षता की और स्पर्श गंगा फाउंडेशन, पर्यावरण जागरूकता, सतत विकास, महिला सशक्तिकरण, जल संरक्षण और गंगा नदी में अन्य जल निकायों की सफाई को बढ़ावा देने वाली एक गैर सरकारी संगठन से भी जु़ड़ी है। केंद्र सरकार ने गंगा अभियान से जुड़े स्वयंसेवकों को ‘गंगा नायकों’ के रूप में मान्यता दी है।
आरुषि ने 2009 में एक पर्यावरण जागरूकता परियोजना “ब्यूटीफुल वैली” को शुरू किया जिसमें उन्होंने तिब्बतीय धर्म गुरू दलाई लामा एवं हेमा मालिनी (सांसद) समेत अन्य लोगों का समर्थन हांसिल किया। उनके पिता रमेश पोखरियाल (भारत के माननीय शिक्षा मंत्री) इस महाकार्य में उनके प्रेरणाश्रोत हैं।
सर्कुलर इकोनॉमी का एक वोट और स्पर्श गंगा की विभिन्न सामाजिक पहलों के लिए आरुषि ने 800 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित किया है और उन्हें मास्क बनाने के अलावा प्लास्टिक के विकल्प के रूप में बेकार फूल और पर्यावरण-अनुकूल बायोडिग्रेडेबल बैग बनाने के लिए प्रशिक्षित किया है। एक शास्त्रीय कथक नृत्यांगणा आरुषि अब 15 से अधिक देशों में अपने गुणों का प्रदर्शन कर चुकी है। उनके कथक बैली “गंगा अवतार” को दुनिया भर में काफी सराहा गया है। “बैलेट ने इनके अपने दो जुनून – पर्यावरण जागरूकता और नृत्य को प्रदर्शित करने का अवसर दिया।
अपने रचनात्मक दिमाग से आरुषि अबतक दो किताबें लिख चुकी हैं और भारतीय सेना पर एक क्षेत्रीय फिल्म ‘मेजर निराला’ का निर्माण भी उन्होंने किया है। उनसे अपने विचारों के आदान प्रदान में निलिशा अग्रवाल के सवाल का जवाब देते हुए कि क्या वह बड़े बैनर की बॉलीवुड परियोजनाओं में दिलचस्पी रखती हैं, आरुषि ने कहा, हां! मैं दो या तीन वेब श्रृंखलाओं के लिए ओटीटी प्लेटफार्म परियोजनाओं के लिए कुछ बड़े निर्देशकों और निर्माताओं के साथ बातचीत कर रही हूं। मैं इसमें रुचि लेकर उन्हें समय देने के लिए प्रसून जोशी की शुक्रगुजार हूं। मुझे जल्द ही अपने लिए इनकी तरफ से बड़े घोषणा का इंतजार है।
एक अन्य सवाल के जवाब में कि पर्यावरण का समर्थन करने के लिए कोविड-19 की इस कठिन घड़ी में हम अपने घरों से क्या कर सकते हैं? आरुषि ने कहा, पहले हमें अपने परिवारों और देश को घर के अंदर रहकर सामाजिक दूरी के प्रोटोकॉल को बनाए रखते हुए सुरक्षित रखना चाहिए। दूसरा हमें पानी का संरक्षण करना चाहिए।
देश के 22 शहरों में पानी का संकट है। उपयोग किए जाने वाले पानी का लगभग 70 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है जिसे कम करने के लिए हमें उचित तरीके से पानी का उपयोग करने का नया तरीका भी जल्द ढूंढना चाहिये।